Wednesday, January 13, 2010

Its lonely here without you...

आज सुबह मैं अपने एक मित्र के ब्लॉग पढ़ रहा था..समय, हालात और व्यस्तता के बीच हमारी मित्रतता कहीं खो सी गयी है, परिचय बाकि है और हम दोनों मित्र दो अलग अलग पहचान लिए अपने अपने जीवन वृत्त में घूम रहे हैं.

परन्तु विषय यह नहीं की हम दोस्त क्यों / क्यों नहीं रहे; विषय है उसके एक परिस्थिति विशेष में हमारे मिलते अनुभवों का, जो महेज एक संयोग मात्र है; और कभी न कभी हम में से हर किसी ने ऐसा अनुभव किया होगा.

३१ दिसम्बर की रात, सारी दुनिया ख़ुशी और जशन के माहौल में डूबी हुई थी और इधर मैं एकांकीपन में सराबोर!!!यह दीगर है की उस वक़्त मेरे साथ मेरा एक दोस्त अपनी नव विवाहिता पत्नी के साथ नए साल का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था.पर इन इन्सानों की भीड़ में कभी कभी हम खुद को कितना अकेला महसूस करते हैं...शरीर से मैं उन दोनों के साथ अपने घर पर था पर मेरा मन पता नहीं जीवन के किस खोखले वीराने में क्या ढूंढ रहा था.

यूं तो मैं लोगों का धनि हूँ पर कमबख्त गाहे बगाहे जिंदगी मुझे मेरे अकेलेपन का एहसास करा ही देती है....

मुझे मेरा ये अकेलापन बेहद प्रिय है. बहाने ढूँढता हूँ मैं अकेला रहने को....ये मौका होता है आपने आप से जुड़ने का...समझने का...पहचानने का....पर सावधान भी रहना पड़ता है वरना अकेलेपन का सूनापन बहुत जल्द ही जीवन में प्रवेश कर जाता है. उस वक़्त अंग्रेजी के ये बोल अनायास ही निकल पड़ते हैं - I am so lonely, I am so lonely.....